किस हद तक जाना है ये कौन जानता है,

किस मंजिल को पाना है ये कौन जानता है,

दोस्ती के दो पल जी भर के जी लो,

किस रोज़ बिछड जाना है ये कौन जानता है.! –

READ  ईदगाह | मुंशी प्रेमचंद | हिंदी कहानी

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *