ये माना ज़िन्दगी है चार दिन की | फ़िराक़ गोरखपुरी

ये माना ज़िन्दगी है चार दिन की | फ़िराक़ गोरखपुरी

ये माना ज़िन्दगी है चार दिन की
बहुत होते हैं यारों चार दिन भी

खुदा को पा गया वाइज़, मगर है
जरुरत आदमी को आदमी की

मिला हूँ मुस्कुरा कर उस से हर बार
मगर आँखों में भी थी कुछ नमी सी

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मोहब्बत में कहें क्या हाल दिल का
खुशी ही काम आती है ना ग़म ही

भरी महफ़िल में हर इक से बचा कर
तेरी आँखों ने मुझसे बात कर ली

लड़कपन की अदा है जानलेवा
गजब की छोकरी है हाथ भर की

रक़ीब-ए-ग़मजदा अब सब्र कर ले
कभी उस से मेरी भी दोस्ती थी

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