यह तो वही शहर है | जयकृष्ण राय तुषार
यह तो वही शहर है | जयकृष्ण राय तुषार

यह तो वही शहर है | जयकृष्ण राय तुषार

यह तो वही शहर है | जयकृष्ण राय तुषार

शहर के
एकांत में
हमको सभी छलते
ढूँढ़ने से भी यहाँ
परिचित नहीं मिलते।

बाँसुरी के
स्वर कहीं
वन प्रांत में खोए,
माँ तुम्हीं को याद कर
हम देर तक रोए,
धूप में हम बर्फ के
मानिंद हैं गलते।

READ  घनघोर आत्मीय क्षण | नीलेश रघुवंशी

रेलगाड़ी
शोरगुल
सिगरेट के धुएँ
प्यास अपनी ओढ़कर
बैठे सभी कुएँ
यहाँ टहनी पर
कँटीले फूल बस खिलते।

गाँव से
लेकर चले जो
गुम हुए सपने
गाँठ में दम हो तभी
ये शहर हैं अपने
यहाँ साँचे में सभी
बाजार के ढलते।

भीड़ में
यह शहर
पाकेटमार जैसा है,
यहाँ पर मेहमान
सिर पर भार जैसा है,
भीड़ में तनहा हमेशा
हम सभी चलते।

READ  काँटोंवाली बाड़ | आरती

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *