विवशता | अभिमन्यु अनत

विवशता | अभिमन्यु अनत

तुम्हारी दर्दनाक चीख सुनकर
मैं जान तो गया कि सरकस का शेर
दीवार फाँदकर
पहुँच गया तुम्हारे घर के भीतर
अपने बगीचे के फलों को
मेरे बच्चों से बचाने के लिए
तुमने खड़ी कर दी है जो ऊँची दीवार
उसे मैं नहीं कर पा रहा पार
तुम्हें शेर से बचा पाने
मैं नहीं पहुँच पा रहा।

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