विदा समय क्‍यों भरे नयन हैं | गिरिजा कुमार माथुर

विदा समय क्‍यों भरे नयन हैं | गिरिजा कुमार माथुर

विदा समय क्‍यों भरे नयन हैं

अब न उदास करो मुख अपना
बार बार फिर कब है मिलना
जिस सपने को सच समझा था
वह सब आज हो रहा सपना
याद भुलाना होंगी सारी
भूले भटके याद न करना
चलते समय उमड़ आए इन पलकों में जलते सावन हैं।

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कैसे पी कर खाली होगी
सदा भरी आँसू की प्‍याली
भरी हुई लौटी पूजा बिन
वह सूनी की सूनी थाली
इन खोई खोई आँखों में –
जीवन ही खो गया सदा को
कैसे अलग अलग कर देंगे
मिला-मिला आँखों की लाली
छुट पाएँगे अब कैसे, जो अब तक छुट न सके बन्‍धन हैं।

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जाने कितना अभी और
सपना बन जाने को है जीवन
जाने कितनी न्यौछावर को
कहना होगा अभी धूल कन
अभी और देनी हैं कितनी
अपनी निधियाँ और किसी को
पर न कभी फिर से पाऊँगा
उनकी विदा समय की चितवन
मेरे गीत किन्हीं गालों पर रुके हुए दो आँसू कन हैं
विदा समय क्यों भरे नयन हैं

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