वर्तमान : अतीत | ब्रजेन्द्र त्रिपाठी

वर्तमान : अतीत | ब्रजेन्द्र त्रिपाठी

कौन कहता है
जिंदगी में घटित नहीं होते
संयोग ?
जीवन में बराबर कुछ… न… कुछ
अनपेक्षित घटित होता रहता है
जो खरा नहीं उतरता
विश्लेषण और तर्कशास्त्र की कसौटी पर
अगर आप उसकी कोई
वस्तुनिष्ठ व्याख्या करना चाहें तो
उसके सूत्र आपके हाथों से
फिसल-फिसल जाते हैं

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बहुत बार
आपके जीवन में
कुछ ऐसा हो जाता है
जिसकी आपने दूर-दूर कल्पना नहीं की होती
जैसे यकायक आपको कोई
पच्चीस-तीस सालों बाद मिल जाता है
और आप उसके साथ
निकल पड़ते हैं अतीत की यात्रा पर
विस्मृति की राख
तेज हवा में उड़ जाती है
और चिनगारी की मानिंद
दहकने लगती हैं स्मृतियाँ

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स्मृति के आलोक में
दीप्त हो उठता है
वर्तमान से अतीत की ओर जाता हुआ
धूल-धूसरित पथ।
तब आप वर्तमान में न होकर
अतीत में होते हैं
याकि आधे वर्तमान में
आधे अतीत में
कभी-कभी दोनों में
ठीक-ठीक तालमेल बिठा पाना
आपके लिए कठिन हो जाता है
और आप फँस जाते हैं
एक अजीब गड़बड़झाले में !

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