बहुत कुछ खोकर मिले
उपलब्धियों के ये शिखर

गाँव छूटा
परिजनों से दूर
ले आई डगर,
खो गईं अमराइयाँ
परिहास की
वे दोपहर,
मार्ग में आँखें बिछाए
है विकल सा वृद्ध घर

हर तरफ
मुस्कान फीकी
औपचारिकता मिली,
धरा बदली
कली मन की
है अभी तक अधखिली,
कभी स्मृतियाँ जगातीं
बात करतीं रात भर

See also  हर तरफ आभास काला | निर्मल शुक्ल

भावनाओं की गली में
मौन के
पहरे लगे हैं,
भोर सी बातें नहीं
बस स्वार्थ के ही
रतजगे हैं,
चंद सिक्के बहुत भारी
जिंदगी के गीत पर