तुम्हें रानी बना कर रखूँगा
तुम्हें रानी बना कर रखूँगा

मैं अनुभवों को पैना कर रही हूँ
मैं दुर्गम रास्तों पे खाली पैर चल रही हूँ
चुभते हैं कुछ नियम काँटों से
मैं दरारों को पाटने की कोशिश कर रही हूँ

तुम्हारे हिस्से का सह रही हूँ
अपने हिस्से का नहीं कह रही
मैं तुम्हारी चाहरदीवारी में
तुम्हारे लिए ही रह रही हूँ

READ  अब भी | कृष्णमोहन झा

आपातकालीन स्थितियों में
मैं बाहर जाया करती हूँ
सहज ही अपने को भूल कर
तुम्हारे अहंकारों की
परवरिश कर रही हूँ

सोचती हूँ
जिस दर्प से थामा था हाथ मेरा
उसी दर्प से एक बार मेरी आँखों में देखकर
कह सकोगे …मैं तुम्हें रानी बनाकर रखूँगा…

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *