सुनो, अब मुझे तुम्हारी याद नहीं आती न, जरा भी नहीं अब मेरी पलकों में याद की कोई बदली नहीं अटकी रहती न भीतर मचलता है रोकी हुई सिसकियों का कोई तूफान मुस्कुराती हूँ जी भर के और तुम्हारी याद को कहती हूँ, ‘फिर कभी’ अब मैं फूलों की पंखुड़ियों में तुम्हारा चेहरा नहीं तलाशती न ही हवाओं की सरगोशियों में तुम्हारी छुअन को महसूस करती हूँ अब मैं परिंदों को नहीं सुनाती तुम्हारे और मेरे प्यार के किस्से उन लम्हों की दास्ताँ जो हमने साथ जिए थे अब बारिशों को देख तुम्हारे साथ भीगे पलों को याद नहीं करती न दिसंबर की सर्द रातों में तुम्हारी हथेलियों की गर्माहट याद करती हूँ सुनो, अब मुझे तुम्हारी याद नहीं आती जरा भी नहीं रसोई में कुछ भी बनाते समय अब नहीं सोचती तुम्हारी प्रिय चीजों के बारे में न घर से निकलने से पहले चुनती हूँ तुम्हारी पसंद के रंग मौसम कोई भी हो, तुम्हारा यह कहना कभी याद नहीं करती कि ‘सारे मौसम तुम ही तो हो… प्रेम की आँच में धधकती गर्मियाँ हों, बौराया बसंत, या शरारती शरद…’ देखो न, मैंने कितनी आसानी से तुम्हारी याद को चाँद की खूँटी पे टाँग दिया है तुम कहते थे ‘सिर्फ याद न किया करो कुछ काम भी किया करो…’ तो अब काम करती हूँ हर वक्त कि तुम्हें याद करने का काम स्थगित है इन दिनों मुझे सब पता है देश दुनिया के बारे में पड़ोस वाली आंटी की बेटे के विवाहेतर संबंध से लेकर भारत में नोटबंदी और अमेरिका में ट्रंप की जीत तक के बारे में मुझे सब्जियों के दाम पता हैं आजकल सच कहती हूँ, इन सबके बीच तुम्हारी याद कहीं नहीं हालाँकि घर से ऑफिस और ऑफिस से घर के बीच किसी भी मोड़ पे तुम्हारा चेहरा दिख जाना मुसलसल जारी है फिर भी मैं तुम्हें याद नहीं करती… जिन रास्तों ने पलकों से छलकती तुम्हारी याद को सहेजा था वो अब मुझे देखकर मुस्कुराते हैं उनकी चौड़ी हथेलियों पर मुस्कुराहट रख देती हूँ जाने कैसे वो मुस्कुराहट तुम्हारा चेहरा बन जाती है मैं तो तुम्हें दिन के किसी भी लम्हे में याद नहीं करती फिर भी…
हरा | प्रतिभा कटियारी हरा | प्रतिभा कटियारी कुछ जो नहीं बीततासमूचा बीतने के बाद भीआमद की आहटें नहीं ढक पातीइंतजार का रेगिस्तानबाद भीषण बारिशों के भीबाँझ ही रह जाता हैधरती का कोई कोनाबेवजह हाथ से छूटकर टूट जाता हैचाय का प्यालासचमुच, क्लोरोफिल का होनाकाफी नहीं होता पत्तियों कोहरा रखने के लिए…
हत्यारे की आँख का आँसू और तुम्हारा चुंबन सुनो | प्रतिभा कटियारी हत्यारे की आँख का आँसू और तुम्हारा चुंबन सुनो | प्रतिभा कटियारी सुनो,बहुत तेज आँधियाँ हैंइतनी तेज कि अगरये जिस्म को छूकर भी गुजर जाएँतो जख्मी होना लाजिमी हैंऔर वो जिस्मों को ही नहींसमूची जिंदगियों को छूकर निकल रही हैंउन्हें निगल रही हैंना……
सौंदर्य | प्रतिभा कटियारी जबसे समझ लिया सौंदर्य का असल रूपतबसे उतार फेंके जेवरात सारेन रहा चाव, सजने-सँवरने कान प्रशंसाओं की दरकार ही रहीनदी के आईने में देखी जो अपनी ही मुस्कानतो उलझे बालों में ही सँवर गईखेतों में काम करने वालियों सेमिलाई नजरतेज धूप को उतरने दिया जिस्म परन, कोई सनस्क्रीन भी नहींरोज साँवली…
सिर्फ तुम्हारा खयाल | प्रतिभा कटियारी खिला देता है हजारों गुलाबबहा देता कल कल करती नदियाँसदियों की सूखी, बंजर जमीन परतुम्हारा खयालकोयल को कर देता है बावलाऔर वो बेमौसम गुंजानेलगती है आकाशटेरती ही जाती हैकुहू कुहू कुहू कुहूतुम्हारा खयालहथेलियों पर उगाता हैसतरंगा इंद्रधनुषकाँधे पर आ बैठते हैं तमाम मौसमताकते हैं टुकुर-टुकुरखिलखिलाती हैं मोगरे की कलियाँबेहिसाबहालाँकि…
सुनो, मैं तुम तक पहुँचना चाहती हूँ… | प्रतिभा कटियारी सुनो, मैं तुम तक पहुँचना चाहती हूँतुम्हारे तसव्वुर को हथेली पर लेकरहर रात निकल पड़ता है मेरा मनदहलीज के उस पार…मैं तुम्हारे शहर की हवाओं मेंघुल जाना चाहती हूँ,तुम्हारे कंधे पर गिरने वाली ओसबनना चाहती हूँजिन रास्तों पर भागते-फिरते हो तुममैं उन रास्तों के सीने…
शहर लंदन | प्रतिभा कटियारी शहर लंदन | प्रतिभा कटियारी एक शहर बारिश की मुट्ठियों मेंधूप का इंतजार बचाता हैथेम्स नदी की हथेलियों पे रखता हैशहर को सींचने की ताकीदनिहायत खूबसूरत पुल कहते हैंपार मत करो मुझे, प्यार करोकला दीर्घाओं और राजमहल के बाहरलगता है कलाओं का जमघटएक बच्ची फुलाती है बड़ा सा गुब्बाराकई वहम…
शब्द भर ‘ठीक’ | प्रतिभा कटियारी शब्द भर ‘ठीक’ | प्रतिभा कटियारी ‘ठीक’ कहने से पहले जाँच लेना खुद को ठीक सेकि कहीं ‘अठीक’ साथ चिपक न जाएकहे गए ‘ठीक’ की पीठ पर’ठीक’ को सिर्फ शब्द भर बना रहने देनाउसे अपनी मुस्कुराहटों से सजाना, सँवरनाऔर जो इस ठीक से बचा हुआ सच है नउदास, तन्हा,…
वही बात | प्रतिभा कटियारी वही बात | प्रतिभा कटियारी उनके पास थीं बंदूकेंउन्हें बस कंधों की तलाश थी,उन्हें बस सीने चाहिए थेउनके हाथों में तलवारें थीं,उनके पास चक्रव्यूह थे बहुत सारेवे तलाश रहे थे मासूम अभिमन्युउनके पास थे क्रूर ठहाकेऔर वीभत्स हँसीवे तलाश रहे थे द्रौपदीउन्होंने हमें ही चुनाहमें मारने के लिएहमारे सीने परहमसे…
रोने के लिए आत्मा को निचोड़ना पड़ता है | प्रतिभा कटियारी रोने के लिए आत्मा को निचोड़ना पड़ता है | प्रतिभा कटियारी तुमने रोना भी नहीं सीखा ठीक सेऐसे उदास होकर भी कोई रोता है क्यायूँ बूँद-बूँद आँखों से बरसना भीकोई रोना हैतुम इसे दुख कहते होन, ये दुख नहींरोने के लिए आत्मा को निचोड़ना…