तीन : स्वरलिपियाँ | अभिज्ञात
तीन : स्वरलिपियाँ | अभिज्ञात

तीन : स्वरलिपियाँ | अभिज्ञात

तीन : स्वरलिपियाँ | अभिज्ञात

वह स्वरलिपियाँ हैं मेरी खातिर
मैं सौंदर्यबोध के बावजूद
नहीं चाहता बदलना
उन आलमारियों का रंग जिन पर तुमने
चाक से ककहरा लिखना सीखा था
कि मैं कहीं खुद उधड़ने की पीड़ा का दंश न झेलूँ
नहीं चाहता कि उधेड़े जाएँ वे स्वेटर
जो तुमने पहने थे अपनी शुरुआती सर्दियों में
नहीं फेंकना चाहता वह कूड़े का अंबार
जो तुम्हें कभी तुम्हारी पहली जिज्ञासाओं
और अबूझ दुनिया का आकर्षण रही
पता नहीं कहाँ क्या छिपा हो
और तुम्हें
एकाएक मिल जाए
और तुम्हें लगे अरे यह तुम थी
और यह कभी था तुम्हारी दुनिया का अभिन्न अंग

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और मेरे लिए तो शुरू और बाद में का को अर्थ नहीं है
मन में तो तुम्हारी विभिन्न अवस्था की मुद्राएँ
अक्सर गड्डमड्ड होती रहतीं हैं
और हर मुद्रा लगती है उतनी ही मनोहर
हर हरकत लगती है थोड़ी देर पहले की हो
इसलिए मैं चाहता हूँ कायम रहे स्मृतियाँ
आखिरकार तुम्हें जाना ही है किसी और घर
और हमें रहना होगा स्मृतियों के ही सहारे
जो असह्य पर तय सा है
आदमी का दुनिया से
और बेटी का अपने ही घर से विदा होना
और हमें तो दोनों के लिए तैयार होते रहना है तिलतिल

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हमारी उपस्थिति में अपने अदृश्य वजूद के साथ
कहीं न कहीं छिपी रहती है विदा।

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