तीन बच्चे | लीना मल्होत्रा राव

तीन बच्चे | लीना मल्होत्रा राव

1.

लगातार बढ़ रहा है कूड़े का ढेर इस धरती की छाती पर 
और तीन बच्चे उसे खाली करने में जुटे हैं 
इनके गंतव्य बोरियों में इनके छोटे छोटे कंधों पर लदे हैं 
भर जाएँगी बोरियाँ मैले कागजों के सपनों से 
भींचकर ले जाएँगे सारे वायरस और बैक्टीरिया अपनी नन्हीं हथेलियों में 
ठेलकर दूर भगा देंगे सब तपेदिक हैजे और मलेरिया के कीटाणु 
और 
इंतजाम करेंगे फ्लैट में रहने वाले बच्चों की सुरक्षा का

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२.

बिंधी नजरों से देखते हैं चाँद को 
सोचते हैं 
ये गोल मैला कागज का टुकड़ा 
जो छिटक के भाग गया है उनकी गिरफ्त से 
जिस दिन कब्जे में आएगा 
बोरी में बंद करके शहर से बाहर फेंक दिया जाएगा

३.

विराम लेते हैं 
अपने काम से 
खेलते है तीन छोटे बच्चे कूड़े के ढेर पर 
दुर्गन्ध की अजान पर करते हैं सजदा 
लफंगे कीटाणुओं को सिखाते है अनुशासन आक्रमण का 
अपने क्रूर बचपन को निठल्लेपन की हँसी में उड़ा कर 
कूड़े के ढेर में से बीनते है हीरों की तरह अपने लिए कुछ खिलौने

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एक को मिलता है एक अपाहिज सिपाही बिना हाथ का 
दूसरे को पिचकारी 
तीसरे को टूटी हुई बंदूक

उनके सपनों के गर्म बाजार में 
नंगे पैर चलकर इच्छाएँ घुसती हैं उनींदी आँखों में 
ईश्वर की उबकाई से लथपथ पत्थर पर लेटे हुए

वे सपने में ढूँढ़ते हैं 
एक साबुत हाथ वाला आदमी

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