कुछ यात्राएँ बाहर हैं, कुछमन के भीतर हैं यात्राएँ तो सब अनंत हैंबस पड़ाव ही हैंराह सुगम हो, पथरीली होबस तनाव ही हैंकिंतु नई आशाओं वालेताजे अवसर हैं कभी यहाँ हैं, कभी वहाँ हैंऔर कभी ठहरेतन-मन दोनों रहे मुसाफिरलाख रहे पहरेशंकाओं-आशंकाओं में भीउजले स्वर हैं थकन मिले या मिले ताजगीकहते कभी नहींचिंताएँ हों या खुशियाँ […]
Tag: Yogendra Verma Vyom
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पीड़ा की भाषा
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कॉलोनी के लोग
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कैसी है अब माँ
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