एक दिन सुबह स्वामी आनन्द आ पहुँचे। रतन को यह पता न था कि उन्हें आने का निमन्त्रण दिया गया है। उदास चेहरे से उसने आकर खबर दी, ”बाबू, गंगामाटी का वह साधु आ पहुँचा है। बलिहारी है, खोज-खाजकर पता लगा ही लिया।” रतन सभी साधु-सज्जनों को सन्देह की दृष्टि से देखता है। राजलक्ष्मी के […]
Sarat Chandra Chattopadhyay
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