यात्रा-मुक्त | राजी सेठ – Yatra-mukt यात्रा-मुक्त | राजी सेठ किट्टू…ओ किट्टुआ! आवाज़ भीतर से उठकर हवेली के पिछवाड़े दौड़ती- थरथराती चली आई थी। रात के दस बजे हैं। अस्पताल से खरीदारी करते हुए घर लौटने में देर हो जाती है। अभी वह पढ़ने बैठने की मंशा को उलट-पलट ही रहा था। इस नाम से […]
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