हरसिंगार झरे | जगदीश व्योम हरसिंगार झरे | जगदीश व्योम सारी रातमहक बिखराकरहरसिंगार झरे। सहमी दूबबाँस गुमसुम हैकोंपल डरी-डरीबूढ़े बरगद कीआँखों मेंखामो्शी पसरीबैठा दिए गएजाने क्योंगंधों पर पहरे। वीरानापनऔर बढ़ गयाजंगल देह हुईहरिणी कीचंचल-चितवन मेंभय की छुईमुईटोने की जद सेअब आखिरबाहर कौन करे। सघन गंधफैलाने वालाव्याकुल है महुआत्रिपिटक बाँच रहासदियों सेपीपल मौन हुआचीवर पाने कीआशा […]
Jagdish Vyom
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सिसक रही हिरनी | जगदीश व्योम
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सिमट गई सूरज के | जगदीश व्योम
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सूरज इतना लाल हुआ | जगदीश व्योम
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सपने कैसे होंगे पूरे | जगदीश व्योम
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रह गया जलजात कोई | जगदीश व्योम
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बाँध रोशनी की गठरी | जगदीश व्योम
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चढ़ती धूप | जगदीश व्योम
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खिलता नहीं क्यों मन | जगदीश व्योम
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