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ये शहर तो | ब्रिज नाथ श्रीवास्तव

ये शहर तो | ब्रिज नाथ श्रीवास्तव ये शहर तो | ब्रिज नाथ श्रीवास्तव ये शहर तोरेत से उजले चमकते हैं। आदमी तोखोज में जल की भटकता हैदोपहर क्यादिन सुबह से ही अखरता है साँझ से हीमन उलूकों के उछलते हैं। धूपमहलों में पिएवातास के झोंकेकौन जानेकब उठेगीसाँस मुँह धोके राजपथपगडंडियों के तन कुचलते हैं। […]