शिव जी के खेती | धरीक्षण मिश्र

शिव जी के खेती | धरीक्षण मिश्र

नीचे लिखल कविता के पहिले के कुछ पाँती – पार्वती
जी के कहल संस्कृत के कविता के अनुवाद हवे :‌‌-

पार्वती जी के कथन शिव जी से :-

साँप के हजार मुँह पाँच बा भतार मुँह
सब घर-बार भूत प्रेत खचमचिया ।
एक पूत छव मुँह एक के हाथी के मुँह
घरे भीखि रोजी कइसे जुटिहे खरचिया ।
सुसुकि सुसुकि गौरी बोलतारी शिव जी से
शिव जी का सुनि सुनि आवतारी हँसिया ।
हँसिया के देखि गौरी करेली गुनान औरी
शिव जी से बिनती करेली एक संसिया ।।1।।
खेत लीं रमेश जी से बीआ लीं धनेश जी से
हर बलराम से त्रिशूल करीं फरवा ।
भइसा यमराज के बरदराज घरहीं के
नाधीं दूनूँ जने के चलाईं शिव हरवा ।
घरे कारबार के त हम जिम्मेदार बानीं
घासि भूसा करि दीहें मूस मोर सवरवा ।
भीखि से उदास होके बोलSतारी पारबती
करीं शिव खेती तबे होइहें गुजरवा ।।2।।

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नारद जी के समर्थन शिव जी से :-

माथ पर गंगा बाड़ी झूठ काइसे बोलब तूँ
झूठ नाहीं बोलब त वोट कहाँ पइब ।
देवता के दादा हउव अब मत दाता के तूँ
दादा दादा कहि के कहाँ ले गोहरइब ।
कार नाहीं बाटे बूढ़ बैल पर सवार बाड़
वोटर का पीछे ऊ बेकार का मकइब ।
वोट ना मिली त कवन पद बा कि पद मिली
सुपदी कहा के कुछ कइसे कमइब ।।3।।
हीत नात केहू ना तोहार सरकार में बा
कहीं इण्टरभ्यू में तूँ कइसे चुनइब ।
हमरा त तनिको उमेद ना बुझात बा कि
राजनीतिक पीड़ितो का लिस्ट में तूँ अइब ।
भूत नाथ हउव पूत करेल त्रिलोक के तूँ
आगे पर कइसे अछूत में गनइब ।
नोकरी के आस छोड़ ऊ त कबें मिली नाहीं
भेट घाट केके केके कहाँ पहुँचइब ।।4।।
देंहि बाटे गोर ओइ में चाँद के अँजोर बाटे
चोर बनि ब्लैक मार्केट का चलइब ।
भीखि के माँगल होखे जाता अपराध अब
बाकी बाटे इहे कि बुढ़ापा में बन्हइब ।
तब ना बन्हइल त अबका बन्हाए जइब
खेती बारी कर ना त पाछे पछतइब ।
पढ़े या पढ़ावे के त नाँव जनि लीह कबें
गावॉ गाईं गन्दगी उठावे में ओकइब ।।5।।
शिक्षक जो बनब त पढ़े के सुभाव वाला
एके दुइ लरिका कलास में तू पइब ।
ज्यादे तर लरिका कलास में किताब ले के
अइबे ना करिहें तूँ कइसे पढ़इब ।
बनब अधीक्षक परीक्षा में त बूझि जइह
हाथ गोड़ टूटी चाहें छूरा से भोंकइब ।
लरिका पढ़वला से लरिका चरवला से
सब दिन लरिके बनल रहि जइब ।।6।।
खेत बारी सब सहकारी होखे जात बाटे
अपना में सब खेत आन के मिलइह ।
आन्हर बहिर लूल लंगड़ जे गन बाड़े
कार करे खातिर ओहि लोग के भिड़इह ।
अपने त एगो अधिकारी कवनो बनि जइह
रोब जिमिदार लेखाँ सबके देखइह ।
खेत रही साझ, केहू खोज पूछ करि नाहीं
रातो दिन बैल आपन छुटहे चरइह ।।7।।
रुपया मदत सरकार से मिलत रही
कागजी हिसाब तनि ढंग से बनइह ।
वाउचर में गोड़ के अँगुठवो के छाप लीह
सवा चारि स में पूरा पाँच गो घटइह ।
सगरे मोनाफा जनि खइह अकेल तुहीं
उपरो का लोगवा के ओहि में चटइह ।
अपने बनिह बाकी लोग के बना के खूबे
साल दुइ साल में देवाला सरकइह ।।8।।

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कवित्त :‌‌-

वैष्णव समाज त समूचा साथ देबे करी
शैव शक्ति में से कुछ वोट बहकावS तूँ ।
पाक शासन साथी इतर देव बाड़े ढ़ेर
ओहू में से कार फोर फार के लगाव तूँ ।
राम के मुवावल जे राक्षस भी बाड़े उहाँ
उनके दे नोट गोट वोट पटियावS तूँ ।
एमें कठिनाई कौनो आवे त तुरंत उहाँ
पूछे के उपाय फोन दिल्ली से मिलाव तूँ ।

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