शमीम | पंकज चतुर्वेदी

जाड़े की सर्द रात 
समय तीन-साढ़े तीन बजे 
रेलवे स्टेशन पर 
घर जाने के लिए 
मुझे ऑटो की तलाश

आख़िर जितने पैसे मैं दे सकता था 
उनमें मुझे मिला 
ऑटो-ड्राइवर एक लड़का 
उम्र सत्रह-अठारह साल

मैंने कहा : मस्जिद के नीचे 
जो पान की दुकान है 
ज़रा वहाँ से होते हुए चलना

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रास्ते में उसने पूछा : 
क्या आप मुसलमान हैं ?

उसके पूछने में 
प्यार की एक तरस थी 
इसलिए मैंने कहा : नहीं, 
पर होते तो अच्छा होता

फिर इतनी ठंडी हवा थी सख़्त 
ऑटो की इतनी घरघराहट 
कि और कोई बात नहीं हो सकी

लगभग आधा घंटे में 
सफ़र ख़त्म हुआ 
किराया देते वक़्त मैंने पूछा : 
तुम्हारा नाम क्या है ?

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उसने जवाब दिया : शमीम ख़ान

नाम में ऐसी कशिश थी 
कि मैंने कहा : 
बहुत अच्छा नाम है 
फिर पूछा : 
तुम पढ़ते नहीं हो ?

एक टूटा हुआ-सा वाक्य सुनाई पड़ा : 
कहाँ से पढ़ें ?

यही मेरे प्यार की हद थी 
और इज़हार की भी