शाम होते ही किसी की देह-सी | ब्रजराज तिवारी

शाम होते ही किसी की देह-सी | ब्रजराज तिवारी

शाम होते ही किसी की देह-सी
महक जाती चाँदनी।

आईने में एक धुँधले चित्र-सी उभर आती है,
बारजे-छत पर अकेले जहाँ होता हूँ बिखर जाती है,
उँगलियों से जब कहीं महसूस करना चाहता हूँ
न जाने क्यों बहक जाती चाँदनी।
महक जाती चाँदनी।

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नदी, वन, पगडंडियों पर दौड़ती है
हवा बन कर कँपाती जल
एक गहरे धुंध में डूबे हुए दिन की तरह
मुझे छलती रही हर पल कँटीली टहनियों के बीच उलझे फूल-सी
मन में कसमसाती चाँदनी।
महक जाती चाँदनी।
शाम होते ही किसी की देह-सी।