शादियों के बाद | विमल चंद्र पांडेय

शादियों के बाद | विमल चंद्र पांडेय

यूँ तो पहले भी दिन में 24 घंटे ही हुआ करते थे
लेकिन हमारी बहादुरी कि हम जीते थे 48
अब 168 घंटों में पाँच हम खालिस अपने लिए निकालें
ऐसी चीजें खबरों का हिस्सा बन जाती हैं शहर में

हर दोस्त कहता है कि वह नहीं बदलेगा शादी के बाद
गोया बदलना हमेशा नकारात्मक क्रिया ही होती हो
लेकिन कोई नहीं रहा वैसा
हरेक बदला कोई कम कोई ज्यादा
कोई बदला बदहवासी में बिना समझे कि ऐसे नहीं वैसे बदलना था
कोई इसलिए नहीं बदला कि बदलने में उसकी कमजोरी न मानी जाए
और इस तरह बदल गया कुछ ज्यादा ही

बदलने की कोई शर्त नहीं थी न ही कोई जरूरत
लेकिन जिस तरह कुंडली मिलाकर शादियों के लिए हमें घेरा गया
हमारे प्रेम विवाहों के पीछे लगा दिए गए दुनिया भर के खलनायक
हमें लगा शादी कोई ऐसा खतरनाक और दुर्लभ खजाना है
जिसके स्पर्श से हम मिट्टी के लोग सोना बन जाएँगे

See also  अबकी अगर लौटा तो | कुँवर नारायण

‘शादी के बाद आवारे के ऊपर जिम्मेदारी आएगी और वह सुधर जाएगा’
ब्रह्मांड की इस सबसे मासूम उम्मीद ने हमारे भीतर शादी को लेकर एक सनसनी पैदा की
हमने शादी का या तो छूत की बीमारी की तरह किया जी-तोड़ विरोध
या फिर मरते रहे सेहरा बाँध कर घोड़ी चढ़ने के लिए
यूँ खुद को तैयार करते रहे अचानक बदल जाने के लिए

बदला वैसे तो कुछ भी नहीं और बहुत कुछ बदला
शादीशुदा दोस्तों के समूह में एकमात्र कुँआरे दोस्त ने बहुत अकेला सा महसूस किया
और हर बार हिंसक होकर भड़का जल्दी शादी करने की सलाहों पर
साथ शराब पीने की कम हो रही आवृत्तियों में
हमने नहीं की पड़ोस की लड़कियों की बातें
किसी फि़ल्म पर बहस हमें बहुत टुच्चा विषय लगा
हमने अपनी पत्नियों की चर्चाएँ की
अपनी बहादुरी के कुछ झूठे सच्चे किस्से सुनाए
और कहा कि हमारे बीच बहुत कुछ बदल गया है

See also  इस शहर में | रामसनेहीलाल शर्मा

दुनियादारी जेब में रख पैसे कमाने में जी-तोड़ मेहनत की हमने
आपस में न मिल पाने की असमर्थता को बड़े आराम से शादी के पल्ले मढ़ दिया
हम हर बार कलपे कि हमारी पत्नियों को हमारी दोस्ती की कद्र नहीं
जो हमें आपस में मिलने
खु़शी के दो पल बाँटने पर अपने तेवर दिखाती हैं

हमने हर मुलाकात में इस बात का जिक्र किया
कि शादी के बाद हमारा सब कुछ बदल गया है
हमने शादी को कोसा और इस बहाने अपनी पत्नियों को
और वही सारी चीजें करते रहे उसी आजादी से
जो करते थे शादी के पहले
हम बचपन के दोस्त थोड़ी देर साथ रहे
फिर दवाइयाँ और प्लाइवुड बेचने अपनी दुकानों और दफ्तरों में चले गए

See also  आख़िरी बात | पंकज चतुर्वेदी

हमारी पत्नियों ने नहीं सुनीं हमारी ये बातें
हमने भी नहीं सुनी उनकी मूक चीखें
उनके अकेलेपन पर मुस्करा कर हमने उन्हें दिन में टीवी देखने की सलाह दी
हम चाहते थे कि वे अपनी पूरी ऊर्जा और समय से हमें प्रेम करें
सिर्फ हमें प्रेम करें और हमारे बच्चे पालें
हमारे सामने वे खुश ही नजर आती थीं

हमने नहीं देखे उनके रंगहीन और खारे आँसू
जहाँ वाकई कुछ बदला था वहाँ तक हमारी नजर ही नहीं पहुँचती थी