शाम का रंग | लाल सिंह दिल

शाम का रंग | लाल सिंह दिल

शाम का रंग फिर पुराना है
जा रहे हैं बस्तियों को फुटपाथ
जा रही है झील कोई दफ्तर से
नौकरी से ले जवाब
पी रही है झील कोई जल की प्यास
चल पड़ा है शहर कुछ गाँवों की राह
फेंककर जा रहा कोई सारी कमाई
पोंछता कोई आ रहा धोती के साथ
कमजोर पशुओं के बदन से चाबुकों का खून
शाम का रंग फिर पुराना है…

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