सपने की कविता | मंगलेश डबराल

सपने की कविता | मंगलेश डबराल

सपने उन अनिवार्य नतीजों में से हैं जिन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता। वे हमारे अर्धजीवन को पूर्णता देने के लिए आते हैं। सपने में ही हमें दिखता है कि हम पहले क्या थे या कि आगे चलकर क्या होंगे। जीवन के एक गोलार्ध में जब हम हाँफते हुए दौड़ लगा रहे होते हैं तो दूसरे गोलार्ध में सपने हमें किसी जगह चुपचाप सुलाए रहते हैं।

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सपने में हमें पृथ्वी गोल दिखाई देती है जैसा कि हमने बचपन की किताबों में पढ़ा था। सूरज तेज गर्म महसूस होता है और तारे अपने ठंडे प्रकाश में सिहरते रहते हैं। हम देखते हैं चारों ओर खुशी के पेड़। सामने से एक साइकिल गुजरती है या कहीं से रेडियो की आवाज सुनाई देती है। सपने में हमें दिखती है अपने जीवन की जड़ें साफ पानी में डूबी हुईं। चाँद दिखता है एक छोटे से अँधेरे कमरे में चमकता हुआ।

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सपने में हम देखते हैं कि हम अच्छे आदमी हैं। देखते हैं एक पुराना टूटा फूटा आईना। देखते हैं हमारी नाक से बहकर आ रहा खून।