समुद्र तट पर रात में
रात की अँधेरी सड़कों पर पाँव चलते हैं
रात के फहराते पंख
इंजन की चिंघाड़
असहाय कदम बढ़ते हुए
आगे ही आगे सड़कें
घिसटती हैं पंखुड़ियों
और पवन का स्पंदन
लहरें आती और जाती हैं, पदप्रक्षालन करती
पाँव तले रेत गुदगुदी करके फिसल जाता है
हाथों की अँजुली में भरा जल
भागते पैरों की आवाज, शायद
नहीं अब कोई आवाज नहीं
थके पेड़ थके और स्तब्ध
भगवान जगन्नाथ का मंदिर, कोणार्क और
मंदिर का नीला बैनर
नर्तकियों के ठहरे हुए आसन
निशांत के आगमन की बेला का अँधेरा
पैर अब उनींदे हैं समुद्री हवा
तट पर पेड़ों और नीले बैनर के
के परे बहती है