समस्या का समाधान | प्रेमशंकर मिश्र

समस्या का समाधान | प्रेमशंकर मिश्र

कल जब हम
कविता सुनने का
प्रस्‍ताव कर रहे थे
अखबारों में एक अजगर ने
एक समूचे बाँध को घोट लिया।
ज्‍यों ही हमने सोचा
समस्‍या समाधान के माध्‍यम से
गमगलत करें
सुनाई पड़ा
राशन का नया-नया
सुनियोजित बाँध टूट चला
भूख बह निकली

गोदाम डूब गए।
इसी तरह
आपको याद होगा
उस दिन
अब हम
आगामी एलेक्‍शन की
योजना बनाने बैठे थे
खबर मिली
एक घसियारे ने
जबर्दस्‍ती
उन्‍हीं की कुर्सी पर बैठकर

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बड़े हाकीम को
बरखास्‍त कर दिया।

एक, दो, तीन
इस तरह की
कई वारदातें हो चुकी।
पता नहीं क्‍यों
ज्‍यों ही हम
विभिन्‍न
रूप, नाम, वेष में
बहुजन हिताय
का नारा बुलंद करते हुए
अपनी सर्वोत्‍तमता की
दुहाई देने चलते हैं
ये
अनमेल
अकास्मिक घटनाएँ
लट छितराए
अट्टहास करती हुई
अपनी लाल जिह्वा से
हमारी धवलता चाटने लगती हैं
और
अगर
हम अभी भी
अपने नशे पर हावी हैं
हमारी पार्टी की प्‍याली
हमारे हाथों से गीर जाती है

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मालिक का लाख-लाख शुक्र
कि अब हम
धुएँ से ऊबने लगे हैं
बिल्‍कुल अपनी बात कहूँ
मुझे तो अभी भी
कभी-कभी ऐसा लगता है

कि अगर
ये चिमनियाँ
फसलों की ओर से हटकर
आकाश की ओर मोड़ दी जाएँ
कागज के रंग बिरंगे खिलौने
तोड़ दिए जाएँ
नाम की जगह काम हो जाएँ
तो शायद
एक बार फिर से
लोग हाजमे के अनुसार
भोजन करना शुरू करें
और
हमारा शाही टुकड़ा भी
शायद
हमें पच जाए।

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