राष्ट्रपति जी ! | पंकज चतुर्वेदी

राष्ट्रपति जी ! | पंकज चतुर्वेदी

एक

कपड़ों के चुनाव में आपकी 
असमर्थता से ज़ाहिर है 
आप कितने मसरूफ़ रहे पढ़ाई में 
आपके बढ़े हुए बेतरतीब बालों की 
अपनी ही तरतीब है 
और आपका अविवाहित रहना – 
प्रधानमंत्री जी के ब्रह्मचर्य से 
अलग है उसका मिज़ाज

दो

यों तो और भी हुए हैं चिंतक वैज्ञानिक 
पर किसी में नहीं थी एटम बम की धाक

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वे जो आपको ले गए राष्ट्रपति के आसन तक 
वे दरअसल जता रहे हैं 
उन्हें कितना पसंद है युद्ध 
हिंसा उनके लिए कितनी अनिवार्य है 
अल्पसंख्यकों के नरसंहार के बीच 
कितना अहम है उनके लिए 
एक अल्पसंख्यक का राष्ट्रपति होना

गुजरात भारत के विकास का मॉडल नहीं 
लोकतंत्र का सबसे बड़ा दुःस्वप्न है 
राष्ट्रपति जी ! 
आपके वहाँ जाने से नहीं 
वे डरते हैं आपकी संवेदना से 
अंत में मुस्कराते हुए 
आपके चुप रहने की विवशता पर

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तीन

कितना सक्षम है आपका विज्ञान 
जिसने भारत को परमाणु बम दिया 
मगर परमाणु बम ने क्या दिया भारत को ?

अलबत्ता उसने पाकिस्तान को हिम्मत दी 
और हिमाक़त 
परमाणु बम से लैस होने की

पाकिस्तान अब नहीं डरता 
युद्ध की धमकियों से 
न वह बाज़ आता है 
कश्मीर में 
हत्यारों की मदद करने से

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भय का सबसे बड़ा साधन जुटाकर भी 
हम भयभीत हैं और अरक्षित 
अब इसका क्या हो, राष्ट्रपति जी ?