रजनीगंधा और तुम | कुमार मंगलम

रजनीगंधा और तुम | कुमार मंगलम

हवा चली है पुरवाई 
और महक उठा है कमरा 
रजनीगंधा की सुगंध से

पूरब की तुम थी 
और जब भी बहती है पुरवा 
तुम्हारी देह गंध को महसूस करता हूँ

2.

मेरे कमरे में 
मेरी पत्नी ने गुलदान में रख दी है रजनीगंधा 
अनजाने

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रजनीगंधा के फूल जैसे आँखें हो तुम्हारी 
उन्हें देखता हूँ तो लगता है 
उनमें कुछ अनुत्तरित सवाल हैं 
जिनके जवाब मेरे पास है

3.

रजनीगंधा का फूल 
मेरे मन को सहलाता है 
और 
याद आते हैं वे पल 
जब तुम्हारी उँगलियाँ मेरे बालों को सहलाती थी

4.

प्रेम के सबसे अकेले क्षण में 
जब हम केलिरत थे 
लाज छोड़ सिमट गई थी तुम मुझ में

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तुम्हारे उन्नत उरोजों पर 
फूलों की पंखुड़ियाँ चिपकी रह गई थी