राजाजी हैं धन्य | जय चक्रवर्ती
राजाजी हैं धन्य | जय चक्रवर्ती

राजाजी हैं धन्य | जय चक्रवर्ती

राजाजी हैं धन्य | जय चक्रवर्ती

तीर कपोतों पर ताने
गिद्धों को पाले हैं
राजा जी हैं धन्य
कि
उनके खेल निराले हैं।

उनका जाल, उन्हीं के दाने
धनुष-बाण उनका
उनकी मजलिस, मुंसिफ उनका
संविधान उनका

सब दरवाजे उनके,
उनके
चाबी-ताले हैं।

प्रजाजनों का धर्म
‘निवाला’ बन कर सभी चलें
राजा जी का शौक कि
जिसको जब चाहें निगलें

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उनके मुँह में खून
और
वे ही रखवाले हैं।

पहन रखे हैं उनके चेहरे ने
चेहरे अनगिन
क्या पूरब, क्या पश्चिम
उनको क्या उत्तर-दक्खिन

अँधियारे हैं सबके,
उनके –
सिर्फ उजाले हैं।

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