रात की दवात में
घोली है सपनों की स्याही
डूबी है यादों की कलम
सुबह होते
दुनिया की फड़फड़ाती डायरी में
लिखने लगती हूँ
एक-एक कर
राग-विराग
नेपथ्य से
गाता है कोई विरह गीत
विदेशिया…
मातमी धुन में
उभरने लगता है
अक्षर दर अक्षर दर्द
जिसे बाँधा था माँ ने
आँचल के कोर में
ये दर्द मेरी यात्रा का
सबसे मारक अस्त्र है…

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