रात | महेश वर्मा

रात | महेश वर्मा

तारों में छोड़कर आए थे
हम अपना दुख
यहाँ इस जगह लेटकर
इसीलिए देखते रहते हैं तारे।
गिरती रहती है
ओस।

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