प्यार : बीसवीं सदी-2 | प्रभात रंजन
प्यार : बीसवीं सदी-2 | प्रभात रंजन

प्यार : बीसवीं सदी-2 | प्रभात रंजन

प्यार : बीसवीं सदी-2 | प्रभात रंजन

प्यार –
पाए हैं आजाद विचार
माँ-बाप ढूँढ़ते हैं किसी रियासत का राजकुमार,
या आई.ए.एस.
बेटी करती है शापिंग, बोटिंग
देखती है सैकिंड शो
‘ओह डैडी तुम कितने अच्छे हो’
(डैडी हैं कर्जदार
कोठी, बावर्ची, माली, सोफा, कार)
घूमती है बेबी (?)
बिगड़े रईसों के संग
मसलन –
(भूतपूर्व) ‘राजा सूर्य प्रताप परमार’।

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(कुछ दिन चला यूँ ही
कुछ-कुछ मीठा,
तीखा, कुछ तीता
मजा, लज्जत…)
फिर,
आशंका, भय…
(…एबार्शन या आत्मघात)
…प्यार –

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