पुरुषोत्तम | प्रतिभा चौहान

पुरुषोत्तम | प्रतिभा चौहान

भावना 
बिना व्याकरण की बहती नदी 
आह – अनगढ़ी लिपि और भाषा 
मानवीयता – इतिहास की साक्षी 
और 
वर्तमान में जमी हुई प्यास 
नदियों ने रची हैं संस्कृतियाँ 
और भाषाओं ने व्यक्ति 
बहते पानी में 
गति उगाती 
लौह संस्कृतियाँ जन्मती है नई दुनिया 
साल दर साल 
उजले गहरे मौसमों में 
चुनी हुई कविताएँ गढ़तीं हैं नए पुरुषोत्तम 
जो सदियों तक करते हैं प्रतिनिधित्व मानव सभ्यता का ।

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