आजकल पिता बात बात पर रोते हैं
रोना जैसे अपने होने को जीना है
कहीं कुछ याद आता है तो रोते हैं
कहीं कुछ भूल जाता है तो रोते हैं
कभी हंस हंस के रोते हैं
कभी रो रो के हंसते हैं
जब वे रोते हैं तब अपने वर्तमान में होते हैं
जब हंसते हैं तब अतीत में
अपने हंसने में जिंदगी का विस्थापन मापते हैं
हंसना जैसे बीते जीवन को फिर से देखना है !