पिता | हरे प्रकाश उपाध्याय
पिता | हरे प्रकाश उपाध्याय

पिता | हरे प्रकाश उपाध्याय

पिता | हरे प्रकाश उपाध्याय

पिता जब बहुत बड़े हो गये
और बूढ़े
तो चीजें उन्हें छोटी दिखने लगीं
बहुत-बहुत छोटी

आखिरकार पिता को
लेना पड़ा चश्मा

चश्मे से चीजें
उन्हें बड़ी दिखाई देनी लगीं
पर चीजें
जितनी थीं और
जिस रूप में
ठीक वैसा
उतना देखना चाहते थे पिता

READ  टुकड़े-टुकड़े छितरी धूप

वे बुढ़ापे में
देखना चाहते थे
हमें अपने बेटे के रूप में
बच्चों को ‘बच्चे’ के रूप में
जबकि हम
उनके चश्मे से ‘बाप’ दिखने लगे थे
और बच्चे ‘सयाने’

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *