• पेट में जाने के बाद दवा की गोली अथवा कैप्सूल पर गैस्ट्रिक जूस, अम्ल और विभिन्न अम्ल काम करने लगते हैं। दवा गल कर अणुओं में टूट जाती है। फिर पेट से छोटी आंत में जाती है।
  • छोटी आंत एक नली नुमा संरचना है और नलियों की दीवारें सेमि पोरस होती हैं। मान लीजिए निर्धारित आकार के सूक्ष्म छेद हैं।
    • अब इसी छोटी आंत के अग्रभाग ड्योडेनम में दवा के अणु और अन्य पचा भोजन गया। उसपर पित्त और पैन्क्रियाटिक एन्जाइमों की प्रक्रिया हुई और पाचन क्रिया आगे बढ़ी। दवा के वो अणु अब आंत की दीवारों के छेद से डिफ्यूज़ होकर रक्तवाहिनियों में आ गए वेन में (आर्टरी नहीं) ।
  • वहां से गए सीधा जिगर में। जिगर में भी कुछ एनाजाइम्स के साथ इनका पाला पड़ा – एन्जाइम्स को छोटी छोटी छन्नी जैसा मानते हैं। जो ड्रग के अणु इनमें नहीं फँसे वो अब बाकी की रक्तवाहिका सिस्टम से पूरे शरीर में जाती हैं।
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  • पूरे शरीर में हर भाग में जब दवा के कणों को लेकर रक्त प्रवाह होता है तो ये दवा के अणु अपना निशाना ढूंढते हैं। ये होते तो रसायन ही हैं। इनकी संरचना ऐसी होती है कि हमारे शरीर के जिस कोशिका के अणुओं में विकार है या जहां दर्द के रिसेप्टर है (ड्रग का जो काम है) उससे संबंधित अणु को टारगेट बनाकर उससे जुड़ जाते हैं। अगर anti inflammatory drug सूजन /दर्द कम करनेवाला ड्रग है तो वो उन अणुओं से जुड़ेगा जो सूजन या दर्द का रिऐक्शन होने पर बन रहे हैं। ये इन अणुओं से जुड़कर विकार का निवारण करते हैं।
  • जब ये अस्वाभाविक रिएक्शन (जिसके कारण बीमार होकर हमें दवा लेनी पड़ी) बंद होता है तो हमारा शरीर न अणुओं को त्याग देता है। ये वापस जिगर भेजे जाते हैं। वहां एन्जाइम्स के साथ जुड़कर मेटाबोलाइट्स बनकर ये किडनी की मदद से शरीर से बाहर कर दिए जाते हैं।
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