पेड़ बनी स्त्री | रेखा चमोली

पेड़ बनी स्त्री | रेखा चमोली

एक पेड़ उगा लिया है मैंने
अपने भीतर
तुम्हारे प्रेम का
उसकी शाखाओं को फैला लिया है
रक्तवाहिनियों की तरह
जो मजबूती से थामें रहती हैं मुझे

इस हरे-भरे पेड़ को लिए
डोलती फिरती हूँ
संसार भर में
इसकी तरलता नमी हरापन
बचाए रखता है मुझमें
आदमी होने का अहसास

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एक पेड़ की तरह मैं
बन जाती हूँ
छाँव, तृप्ति, दृढ़ता, बसेरा।