पत्थर की बैंच | चंद्रकांत देवताले
पत्थर की बैंच | चंद्रकांत देवताले

पत्थर की बैंच | चंद्रकांत देवताले

पत्थर की बैंच | चंद्रकांत देवताले

पत्थर की बैंच
जिस पर रोता हुआ बच्चा
बिस्कुट कुतरते चुप हो रहा है

जिस पर एक थका युवक
अपने कुचले हुए सपनों को सहला रहा है

जिस पर हाथों से आँखे ढाँप
एक रिटायर्ड बूढ़ा भर दोपहरी सो रहा है

READ  एक उंगली उठ जाती है | अंजना वर्मा

जिस पर वे दोनों
जिंदगी के सपने बुन रहे हैं

पत्थर की बैंच
जिस पर अंकित है आँसू, थकान
विश्राम और प्रेम की स्मृतियाँ

इस पत्थर की बैंच के लिए भी
शुरु हो सकता है किसी दिन
हत्याओं का सिलसिला
इसे उखाड़ कर ले जाया
अथवा तोड़ा भी जा सकता है
पता नहीं सबसे पहले कौन आसीन हुआ होगा
इस पत्थर की बैंच पर!

READ  अच्छा लगा | कुँवर नारायण

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *