पतझड़ के बाद | राहुल देव

पतझड़ के बाद | राहुल देव

झड़पड़ झड़पड़ पतझड़ 
सतत रूप से प्रवाहमान 
आधी जिंदगी के बाद 
तेरा आना 
भला हो तेरा 
उससे ठीक पहले 
सौंदर्य आकर्षित करता था 
तब क्या समझा 
चलो अभी सोचा 
बरसों पहले तेरी याद न आई 
और अचानक आज तुमसे मिलकर 
में खुश हो लेता हूँ 
सच पूछो – 
तो अंतर से दुखी हूँ भाई ! 
हर बहार के बाद तेरा आना 
एक उजाड़ सी जिंदगी 
फिर प्रवाहमान होने की कोशिश में 
स्थिर होकर भी चलने को इच्छुक 
आज में तुमसे कहने की हिम्मत करता हूँ 
इसके बाद मैं खुश होना चाहता हूँ 
उससे पहले तुम मेरे साथ नहीं थे 
केवल हँस रहे थे एक बेबसी पर 
तुम्हारा कोई हिस्सा नहीं है 
मेरी खुशी में 
मेरी अपनी खुशी में 
तुम फिर हँसोगे तनिक 
मैं जानकार भी चुप हूँ, क्यों – 
क्योंकि इस जगत में 
सर्वस्व है क्षणिक 
सब कुछ है क्षणिक !

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