परिवर्तन | नरेश सक्सेना
बरसों से बंद पड़ी हवेली में
कोई नहीं आया था
एक दिन आई आँधी
उसके साथ आई धूल
सूखे हुए पत्ते और तिनके और कागज के टुकड़े
पूरी हवेली एक अजीब ताजगी से भर गई।
सब कुछ हिंदी में
बरसों से बंद पड़ी हवेली में
कोई नहीं आया था
एक दिन आई आँधी
उसके साथ आई धूल
सूखे हुए पत्ते और तिनके और कागज के टुकड़े
पूरी हवेली एक अजीब ताजगी से भर गई।