पंजे चीतों के | माहेश्वर तिवारी

पंजे चीतों के | माहेश्वर तिवारी

शहरों से
गाँवों तक
दिखते पंजे चीतों के।

सहमें हुए मेमने
दुबके जाकर झाड़ी में
गुर्राहट पसरी है
जंगल और पहाड़ी में

नया
कथानक आकर
दिखते पंजे चीतों के।

एक अजीब भयावह
चुप्पी पहने खड़ा समय
तेजी से डग भरता
पा पहुँचता है संशय

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नई
भूमिका रोज
परखते पंजे चीतों के।