मैं,
छोड़ आया था ‘माँ’
पर छूटी नहीं, तुम
जहाज-भर साथ रही
मैंने,
पहचाना नहीं –
सूरीनाम नदी तट पर
देश में
तुम मेरे साथ हो
अपनी परछाई में
तुम्हें ही देखता हूँ ‘माँ’

See also  घर प्रतीक्षा करेगा | जितेंद्र श्रीवास्तव | हिंदी कविता