नियंत्रण | नरेश अग्रवाल
नियंत्रण | नरेश अग्रवाल

नियंत्रण | नरेश अग्रवाल

नियंत्रण | नरेश अग्रवाल

जिन रातों में हमने उत्सव मनाए 
फिर उसी रात को देखकर हम डर गए 
जीवन संचारित होता है जहाँ से 
अपार प्रफुल्लता लाते हुए 
जब असंचालित हो जाता है 
कच्चे अनुभवों के छोर से 
ये विपत्तियाँ ही तो हैं। 
कमरे के भीतर गमलों में 
ढेरों फूल कभी नहीं आएँगे 
एक दिन मिट्टी ही खा जाएगी 
उनकी सड़ी-गली डालियाँ। 
बहादुर योद्धा तलवार से नहीं 
अपने पराक्रम से जीतते हैं 
और बिना तलवार के भी 
वे उतने ही पराक्रमी हैं। 
सारे नियंत्रण को ताकत चाहिए 
और वो मैं ढूँढ़ता हूँ अपने आप में 
कहाँ है वो? कैसे उसे संचालित करूँ? 
कभी हार नहीं मानता किसी का भी जीवन 
वह उसे बचाए रखने के लिए पूरे प्रयत्न करता है 
और मैं अपनी ताकत के सारे स्रोत ढूँढ़कर 
फिर से बलिष्ठ हो जाता हूँ।

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