निरावरण वह | पंकज चतुर्वेदी

( फ़्रांसीसी कलाकार गुस्ताव कूर्बे की कृति  चित्रकार का स्टूडियो ‘ को देखकर)

देह को निरावृत करने में 
वह झिझकती है 
क्या इसलिए कि उस पर 
प्यार के निशान हैं ?

नहीं

बिजलियों की तड़प से 
पुष्ट थे उभार 
आकाश की लालिमा छुपाए हुए

क्षितिज था रेशम की सलवटों-सा 
पाँवों से लिपटा हुआ

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जब उसे निरावरण देखा 
प्रतीक्षा के ताप से उष्ण 
लज्जा के रोमांच से भरी 
अपनी निष्कलुष आभा में दमकता 
स्वर्ण थी वह

इंद्र के शाप से शापित नहीं 
न मनुष्य-सान्निध्य से म्लान

वह नदी का जल 
हमेशा ताज़ा 
समस्त संसर्गों को आत्मसात् किए हुए 
छलछल पावनता