नारी | रघुवीर सहाय
नारी | रघुवीर सहाय

नारी | रघुवीर सहाय

नारी | रघुवीर सहाय

नारी बिचारी है
पुरुष की मारी है
तन से क्षुधित है
मन से मुदित है
लपक कर झपक कर
अंत में चित है

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