नमक के साथ
हमारे भीतर समुद्र है
और चीजें बेस्वाद नहीं हैं
हथेलियों का नमक कि जिसने
फीकी होने से बचाई जिंदगी की उमर
और रोटी में नमक की तरह बना रहा परस्पर विश्वास
चुटकी भर नमक और माड़-भात
हमारे जनपद की कितनी औरतों की
जिंदा रखे हुए है भूख-पिआस
(जहाँ लोन-रोटी का इंतजाम
आज भी हाड़-तोड़ मेहनत है।)
सारी रसोई परोस
चुपचाप लोन-पानी पीकर
भूख को सुला देना
होता है स्त्रियों में ही ऐसा हुनर
पुरुष के तो ढीले पड़ जाएँगे हाथ-पाँव

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अक्सर नमक चेहरे पर सलोनापन होने से अधिक
आँसुओं में बह जाता है बहुत
जिन स्त्रियों के चेहरे पर नमक है
वही जानती हैं कि क्या होता है
इस सभ्य समय में चेहरे पर नमक
होने का अर्थ!!

काम-धंधे से लौट खीरा की फाँक के साथ
गदिया (हथेली) पर रखा नमक चखता है जब भाई
तो यह छप्पन भोग के बाहर
एक अनूठा स्वाद होता है

महात्मा का प्रताप कि भारत की आजादी के पहले
डाँडी में आजाद हुआ नमक!

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अपनी जबान में इतना चढ़ गया है नमक
कि बिना नमक का खयाल भी
देता है फीकी-फीकी प्रतीति
और इबारत होंठ पर नहीं ठहरती
टर्रा नमक और हरी मिर्च के साथ
चने की भाजी खाना
चैत में आम की टिकोरी (अमिया) खाने के बाद
गदिया पर बचा भुर-भुरा नमक
स्मृति में उतार देता है जब-तब अपनी लुनाई

हमारी देह में तप रही थी जब दोपहर
और चीख लिया था हमने एक-दूसरे की देह का नमक
ताजा है आत्मा में वह जस का तस

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नमक के इतने किस्से हैं
कि बहुरियों को स्वप्न में भी घेर लेती है
दाल में नमक बिसर जाने की थरथराहट
और वह नींद के विमान से रसोई में गिरती हैं धड़ाम!

बाजारू-वक्त कि नमक भी अपने नमकपन के लिए
जूझ रहा है दिन-रात
और विज्ञापन का नमक झर-झर कर
आम आदमी की पहुँच से होता जा रहा है दूर!

दाल-रोटी चटनी से हुलस रही है थाली
कौर तोड़ा नहीं कि नमक ही तय करेगा
जेवनार का स्वाद!