अब कुछ नहीं था सिर्फ हम लौट रहे थे इतने सारे लोग सिर झुकाए हुए चुपचाप लौट रहे थे उसे नदी को सौंपकर
और नदी अँधेरे में भी लग रही थी पहले से ज्यादा उदार और अपरंपार उसके लिए बहना उतना ही सरल था उतना ही साँवला और परेशान था उसका पानी और अब हम लौट रहे थे क्योंकि अब हम खाली थे सबसे अधिक खाली थे हमारे कंधे क्योंकि अब हमने नदी का कर्ज उतार दिया था न जाने किसके हाथ में एक लालटेन थी धुँधली-सी जो चल रही थी आगे-आगे यों हमें दिख गई बस्ती यों हम दाखिल हुए फिर से बस्ती में
हमारे आने पर भूँका नहीं एक भी कुत्ता क्योंकि कुत्तों को सब मालूम था उस घर के किवाड़ अब भी खुले थे कुछ नहीं था सिर्फ रस्म के मुताबिक चौखट के पास धीमे-धीमे जल रही थी थोड़ी-सी आग और उससे कुछ हटकर रखा था लोहा हम बारी-बारी आग के पास गए और लोहे के पास गए हमने बारी-बारी झुककर दोनों को छुआ
होंठ | केदारनाथ सिंह होंठ | केदारनाथ सिंह हर सुबहहोंठों को चाहिए कोई एक नामयानी एक खूब लाल और गाढ़ा-सा शहदजो सिर्फ मनुष्य की देह से टपकता है कई बारदेह से अलगजीना चाहते हैं होंठवे थरथराना-छटपटाना चाहते हैंदेह से अलगफिर यह जानकरकि यह संभव नहींवे पी लेते हैं अपना सारा गुस्साऔर गुनगुनाने लगते हैंअपनी जगह…
सृष्टि पर पहरा | केदारनाथ सिंह सृष्टि पर पहरा | केदारनाथ सिंह जड़ों की डगमग खड़ाऊँ पहनेवह सामने खड़ा थासिवान का प्रहरीजैसे मुक्तिबोध का ब्रह्मराक्षस -एक सूखता हुआ लंबा झरनाठ वृक्षजिसके शीर्ष पर हिल रहेतीन-चार पत्ते कितना भव्य थाएक सूखते हुए वृक्ष की फुनगी परमहज तीन-चार पत्तों का हिलना उस विकट सुखाड़ मेंसृष्टि पर पहरा…
सूर्यास्त के बाद एक अँधेरी बस्ती से गुजरते हुए | केदारनाथ सिंह सूर्यास्त के बाद एक अँधेरी बस्ती से गुजरते हुए | केदारनाथ सिंह भर लोदूध की धार कीधीमी-धीमी चोटेंदिये की लौ की पहली कँपकँपीआत्मा में भर लो भर लोएक झुकी हुई बूढ़ीनिगाह के सामनेमानस की पहली चौपाई का खुलनाऔर अंतिम दोहे कासुलगना भर लो…
सन ४७ को याद करते हुए | केदारनाथ सिंह सन ४७ को याद करते हुए | केदारनाथ सिंह तुम्हें नूर मियाँ की याद है केदारनाथ सिंहगेहुँए नूर मियाँठिगने नूर मियाँरामगढ़ बाजार से सुरमा बेच करसबसे आखिर मे लौटने वाले नूर मियाँक्या तुम्हें कुछ भी याद है केदारनाथ सिंहतुम्हें याद है मदरसाइमली का पेड़इमामबाड़ा तुम्हें याद…
सुई और तागे के बीच में | केदारनाथ सिंह सुई और तागे के बीच में | केदारनाथ सिंह माँ मेरे अकेलेपन के बारे में सोच रही हैपानी गिर नहीं रहापर गिर सकता है किसी भी समयमुझे बाहर जाना हैऔर माँ चुप है कि मुझे बाहर जाना है यह तय हैकि मैं बाहर जाऊँगा तो माँ…