मुझे क्षमा करें | राकेश रंजन

मुझे क्षमा करें | राकेश रंजन

मैं और सुबह आता
पर देर हो गई

मैं चला गया था
शाम के परिंदों के साथ
जंगलों, पहाड़ों के पास
रातभर रहा सुनता पत्तों पर ओस का टपकना
पेड़ों के साथ
खड़ा रहा निविड़ अंधकार में
तारों की डूबती निगाहें
देखती रहीं मुझे निशब्द
प्राणों की काँपती पुकारें और विकल पंख-ध्वनियाँ
जगाए रहीं रातभर
निगलती रहीं मुझको भूखी छायाएँ

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लौटते समय
मेरे रस्ते में फैला था
बकरी की आँखों-सा पीला सन्नाटा
जले हुए डैने छितराए
सारस-सा गिरा था सवेरा
सवेरे से पहले
फेंक गया था कोई जन्मजात बच्चा
शिशिर के जलाशय में फूलकर
सफेद हुआ था उसका फूल-सा शरीर
उसकी ही बंद मुट्ठियों में मैं फँसा रह गया था कुछ देर, मुझे क्षमा करें

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मैं और सुबह आता
पर देर हो गई।