मुग्ध | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता
मुग्ध | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता

नर्मदा पर मुग्ध
नर्मदा के किनारे
एक युवती खड़ी है

घुल रही है
धीरे-धीरे उसकी काया

निर्मलता-कोमलता
बढ़ रही है उसके भीतर

भीट पर अपनी साड़ी फेंक
उसने पानी पहन लिया है

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