मिले ना तुम्हारी नजर के इशारे | अलका विजय
मिले ना तुम्हारी नजर के इशारे | अलका विजय
मिले ना तुम्हारी नजर के इशारे
यही सो रहेंगे सदा मौन धारे
है वसुधा के मन में भरा प्यार सारा।
है ये भी तुम्हारा है वो भी तुम्हारा।
भले छीन लो उसके मुँह से निवाले।
मगर अपना सर्वस्व तुम पर ही वारे।
मिले ना…
यही सो…
कहीं पर्वतों से ये झरना जो गिरता।
छन-छन के कोई नवल गीत रचता।
कहे मन मैं तोड़ूँ ये बंधन जगत के।
थिरकता रहे मन ये आँगन तिहारे।
मिले ना…
यही सो…
है जलता ये सूरज सदा से गगन में।
चंदा भी जलता है शीतल अगन में।
जलती जो मन की ये लौ झिलमिलाती।
बचाई है अब तक तुम्हारे सहारे।
मिले ना…
यही सो…
फैला गगन जो क्षितिज से क्षितिज तक।
नहीं प्यार ऐसा किसी का अभी तक।
जो बदले में मिलने की अब चाहत तेरी।
भला क्यूँ किसी को कोई अब पुकारे।
मिले ना…
यही सो…
चलती हवाएँ मधुर राग घोलें।
पीपल की पाती सरीख मन ये डोले।
बिखर जाऊँ खुशबू मैं बन कर हवा में।
बदन पर लपेटे ये संदल सितारे।
मिले ना…
यही सो…