मिल गया है इक नया संसार तुमसे।
लग रहा करने लगी हूँ प्यार तुमसे।
                                   
साँझ की चढ़ती जवानी भी न भाती।      
भोर की पहली किरन भी हास पाती।
ओस के संसर्ग भीगे पात दिल के।
फूल ज्यों सोए पड़े हैं आज खिल के।
है इन्हीं सा हाल, जोड़े तार तुमसे ?
लग रहा करने लगी हूँ प्यार तुमसे।
                                   
आज ये नदिया चली थी शाम तट से।
सब घटाँ पूछतीं थीं राज पट से।
अब हवाओं में नहीं गिरती-सँभलती?
मौन थी मैं, धड़कनें कहतीं-उछलती।
मैंने सीखा है चलन का सार तुमसे।
लग रहा करने लगी हूँ प्यार तुमसे।
                                   
तुम न थे तो ये कहाँ कुछ हो रहा था?
आसमाँ भी दूर जाकर सो रहा था।
स्नेह-तिनके-सा तुम्हारा खींच लाया।
ऊर्मियों पर आज कैसा गीत गाया।
दिल कहे कर पार सीखूँ प्यार तुमसे ?
लग रहा करने लगी हूँ प्यार तुमसे।

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