मेरी यादों के कर्ज में जकड़ते वजू़द पर | प्रतिभा चौहान

मेरी यादों के कर्ज में जकड़ते वजू़द पर | प्रतिभा चौहान

जिस दिन तुमने 
दी मुझे लंबी प्रतीक्षा 
तभी से लिख रही हूँ 
मेरी यादों के कर्ज में जकड़ते तुम्हारे वजू़द पर,

एक लंबी कविता 
उजालों को निगलती रातों पर 
रातों को कुतरते उजालों की उबासियों पर 
लिख रही हूँ कविता,

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मौसमों की बेरहमी 
बदलते रंगों और अतीत के रहस्यों पर 
सुगबुगाते धुंधलके चित्रों 
वापसी की खुशनुमा ध्वनि पर 
रेत पर, नदी पर, 
पानी पर, समय पर 
उस भूमिका पर 
जो किसी लंबे उपन्यास पर लिखी जानी है 
शोक पर, संताप पर 
गीत और आनंद पर 
लिख रही हूँ कविता,

तुम्हारी मुस्कुराहट के खजाने पर 
आहट पर, खिलखिलाहट पर 
थम गए पानी के हस्तक्षेप पर 
लिख रही हूँ एक लंबी कविता ।

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